
९ मई, २०२५ को, भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय के उस आदेश को पलट दिया, जिसमें चल रहे मुकदमे के बारे में अंग्रेजी विकिपीडिया लेख को हटाने की आवश्यकता थी। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्यायिक कार्यवाही की सार्वजनिक चर्चा और रचनात्मक आलोचना भारतीय संविधान के सिद्धांतों के अनुरूप है, न कि उनके विरुद्ध। उसी दिन, विकिमीडिया फ़ाउंडेशन ने विकिपीडिया लेख को पुनः स्थापित कर दिया , और हमारे स्वयंसेवकों के वैश्विक समुदाय ने मिनटों के भीतर संपादन प्रारम्भ कर दिया । हमारे लिए, यह विकिपीडिया के स्वयंसेवक संपादकों के अधिकारों की रक्षा के महत्त्व को उजागर करता है और दिखाता है कि विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करके उनके द्वारा बनाए गए लेख जनता के जानने के अधिकार का भाग माने जाते हैं – तब भी जब वे लेख विकिपीडिया से जुड़े मुकदमों पर चर्चा करते हैं।
अक्टूबर २०२४ में, विकिमीडिया फाउंडेशन (फाउंडेशन) ने एशियन न्यूज इंटरनेशनल द्वारा फाउंडेशन के खिलाफ दायर किए गए मानहानि के मुकदमे के भाग के रूप में अपील दायर की थी। इस अपील के दौरान, फाउंडेशन को उसी मुकदमे के बारे में अंग्रेजी विकिपीडिया लेख को हटाने लिए निष्कासन (टेकडाउन) प्राप्त हुआ था । यह देखते हुए कि लेख सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध माध्यमिक विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित था, हमने तर्क दिया कि इन पंक्तियों पर इसका निष्कासन अनुचित् होगा, खासकर जब सामान घटनाओं की रिपोर्ट करने वाले समाचार लेखों के खिलाफ कोई सामान आदेश जारी नहींं किया गया था। इसके बावजूद, दिल्ली उच्च न्यायालय ने लेख को हटाने का निर्देश देते हुए एक आदेश जारी किया और पाया कि लेख प्रथम दृष्टया अवमाननापूर्ण था और उप-न्यायालय सिद्धांत का उल्लंघन करता था ।
अपने कानूनी उपायों को सुरक्षित रखने के लिए, फाउंडेशन ने आदेश का अनुपालन किया, जो फाउंडेशन और विकिपीडिया में योगदान देने वाले स्वयंसेवी संपादकों के लिए निराशाजनक था।
मार्च २०२५ में, फाउंडेशन ने ज्ञान तक पहुँच के समर्थन में और लेख को बहाल हेतु भारतीय सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर हेतु इन कानूनी उपायों का उपयोग किया।
सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष इसकी स्थिति यह थी: फाउंडेशन ने मुकदमे के लेख के निर्माण में कोई भूमिका नहींं निभाई क्योंकि यह विकिपीडिया की सामग्री पर संपादकीय नियंत्रण नहींं रखता है। ऐसा आदेश सार्वजनिक रिपोर्टिंग और चल रही कार्यवाही के बारे में चर्चाओं के संबंध में स्थापित कानूनी मिवर्ष के साथ असंगत था और विकिपीडिया और उससे परे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और ज्ञान तक पहुँच पर भयावह प्रभाव डाल सकता है। यदि आदेश को बरकरार रखा जाता है, तो यह स्वयंसेवकों की सार्वजनिक हित के उल्लेखनीय विषयों पर विकिपीडिया में सामग्री जोड़ने की क्षमताा को सीमित कर देगा।
सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा, “किसी भी व्यवस्था और उसमें न्यायपालिका भी सम्मिलित है, के सुधार के लिए आत्मनिरीक्षण महत्त्वपूर्ण है। यह तभी हो सकता है जब न्यायालय के समक्ष उपलब्ध मुद्दों पर भी जोरदार बहस हो। न्यायपालिका और मीडिया दोनों ही लोकतंत्र के आधारभूत स्तंभ हैं जो हमारे संविधान की एक बुनियादी विशेषता है। उदार लोकतंत्र के पनपने के लिए दोनों को एक दूसरे का पूरक होना चाहिए।”
अपने पूर्व निर्णयों की समीक्षा करने के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के लेख हटाने के आदेश को निरस्त कर दिया, जिससे फाउंडेशन को मूल लेख को पुनः स्थापित करने का अधिकार मिल गया , जिसमें 3 मिनट से भी कम समय में पहला संपादन किया गया।
यह क्यों मायने रखता है: मुक्त अभिव्यक्ति की जीत, विकिपीडिया और उससे परे !
जबकि पिछले मामले पारंपरिक मीडिया आउटलेट या व्यक्तिगत वक्ताओं पर केंद्रित थे, यह पहला ज्ञात उदाहरण है जहाँ एक क्राउड-सोर्स मंच -विकिपीडिया- के होस्ट ने अपने उपयोगकर्ताओं के अपने मंच पर महत्त्वपूर्ण कार्यवाही पर रिपोर्ट करने के अधिकार का सफलतापूर्वक बचाव किया। यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है, यानी, अन्य सार्वजनिक संस्थानों की तरह, अदालतें लोगों को सूचित रखने के साधन के रूप में सार्वजनिक चर्चाओं के महत्त्व को देखती हैं। तटस्थ, सत्यापन योग्य और विश्वसनीय स्रोत मुक्त ज्ञान के आधार पर विकिपीडिया पर चल रही कार्यवाही का दस्तावेजीकरण, खुले न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप है ।
इस बात की पुष्टि करके, यह निर्णय विकिपीडिया के स्वयंसेवकों और पत्रकारों, शोधकर्ताओं, कानूनी टिप्पणीकारों और अन्य लोगों के प्रयासों को बल देता है जो ऐसी जानकारी के विश्वसनीय स्रोतों के निर्माण में योगदान करते हैं। यह न केवल एक कानूनी राहत है बल्कि एक ऐसी विश्व बनाने के लिए फाउंडेशन की प्रतिबद्धता की पुष्टि है जहाँ हर इंसान सभी ज्ञान के योग में स्वतंत्र रूप से भाग ले सके।
फाउंडेशन मुक्त ज्ञान के मिशन और इसमें योगदान देने वाले स्वयंसेवकों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
फाउंडेशन वरिष्ठ अधिवक्ता श्री कपिल सिब्बल और श्री अखिल सिब्बल को भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विकिपीडिया के महत्त्व और इसके संपादकों के योगदान का प्रतिनिधित्व हेतु धन्यवाद देना चाहता है, जिसमें ट्राइलीगल (निखिल नरेंद्रन और टीन अब्राहम) और एजेडबी एंड पार्टनर्स (विजयेंद्र प्रताप सिंह और अभिज्ञान जे) के साथ-साथ उनके अन्य योगदान देने वाले टीम के सदस्यों की ओर से मुकदमेबाजी में समर्थन देना सम्मिलित है। फाउंडेशन संगठनों और व्यक्तियों (विशेष रूप से, सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर, इंडिया और डेमोक्रेटिक अलायंस फॉर नॉलेज फ्रीडम) के समर्थन को भी धन्यवाद देता है, जिनके प्रयासों से विकिपीडिया के व्यापक महत्त्व को जनता के सामने लाने में सहयता मिली।

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