हमारे गीत, हमारी ज़मीन: बिहार के गांवों से मगही लोकगीतों का दस्तावेजीकरण

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अनुश्री द्वारा

जब मैंने पहली बार Indic Oral Culture (EIOC) प्रोजेक्ट के बारे में सुना, तो मुझे लगा कि यह मेरे लिए बिल्कुल उपयुक्त है। मुझे हमेशा से लोक-संस्कृति और मौखिक परंपराओं जैसे विषयों में योगदान देने की इच्छा थी। शुरुआत में मैंने अकेले ही प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया, लेकिन जल्द ही समझ आया कि यह काम एक टीम के साथ मिलकर और बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इसलिए मैंने अपनी सहपाठियों गायत्री और अंजलि को इस प्रोजेक्ट से जोड़ा। हम तीनों ने मिलकर फील्ड वर्क किया और कई लोकगीतों को इकट्ठा करने में सफलता पाई।

इस यात्रा में हमें लगातार मार्गदर्शन और समर्थन देने के लिए हम अमृत सूफी (प्रोजेक्ट मैनेजर) और यक्षिता (कम्युनिटी कोऑर्डिनेटर) के विशेष रूप से आभारी हैं। उन्होंने हमें न केवल जानकारी दी, बल्कि हर चुनौती में हमारे साथ खड़े रहे।

यात्रा की शुरुआत

हम कोलकाता में रहते हैं, जहाँ ज़्यादातर लोग बंगाली भाषी हैं, इसलिए हमें मगही भाषा के गीत खोजने में दिक्कत हो रही थी। तब हमने बिहार के गांवों में फील्ड वर्क करने का निर्णय लिया और सबसे पहले लखीसराय की यात्रा की।

शुरुआत में थोड़ी घबराहट थी—नई जगह, ठहरने का कोई ठिकाना नहीं। लेकिन गाँव के लोगों ने हमारे साथ बहुत अपनापन दिखाया। हम एक रिश्तेदार के घर रुके, जहाँ हमें गर्मजोशी से स्वागत मिला।

एक सुबह हमने पीठा (गुड़ और तिल से बनी मिठाई) खाई, जो मेरे लिए एक नया स्वाद था। फील्ड वर्क के बाद हमारी मेज़बान हमें अशोकधाम मंदिर घुमाने ले गईं। हम खेत-खलिहान पार करते हुए मंदिर तक पहुँच गए, रास्ते का पता ही नहीं चला। वहाँ से लौटते वक्त हम लिट्टी-चोखा खाए—बिहार की शान। इसके बाद हम लाली पहाड़ी भी गए, जहाँ पहले बौद्ध महिलाएं साधना करती थीं। अब ये जगह ऐतिहासिक अवशेषों से भरी हुई है।

हम पूस महीने में गए थे, ठीक मकर संक्रांति से पहले। वहां इस त्योहार की तैयारियाँ ज़ोरों पर थीं। बाजारों में चहल-पहल थी और जगह-जगह तिल और गुड़ की मिठाइयाँ बिक रही थीं। लोगों ने हमें बताया कि मकर संक्रांति के दिन यहाँ लाली पहाड़ी पर मेला भी लगता है। हमने भी तरह-तरह की पारंपरिक मिठाइयाँ खाईं और त्योहार का आनंद लिया।

भाटा गाँव की स्मृतियाँ

लखीसराय के बाद हमने भाटा गाँव (नवादा ज़िला) का रुख किया। वहाँ गायत्री की जान-पहचान की “अम्मा” रहती हैं। उन्होंने हमें अपने घर बुलाया और बड़ी आत्मीयता से स्वागत किया। भाटा एक छोटा सा गाँव है, जहाँ संसाधन सीमित हैं लेकिन लोगों का दिल बहुत बड़ा है।

नाश्ते में हमें सत्तू पराठा, धनिया की चटनी और फूलगोभी की भाजी मिली। उसके बाद हम फील्ड वर्क के लिए निकल पड़े। यहाँ एक-एक घर जाकर महिलाओं से गीत गवाए। शुरुआत में वे संकोच करतीं, लेकिन हमारे कहने पर खुशी से गा भी देतीं। बच्चे तो हमारे दोस्त बन गए थे—बकरी के बच्चे गोद में देते, फोटो खिंचवाते और चुपचाप बैठकर गीत सुनते।

कुछ महिलाएं खुद चलकर आईं और गीत गाईं। कुछ खेतों में काम करते हुए ही गाने लगीं। वह स्नेह और आत्मीयता आज भी दिल में बसी है।

भावनाओं से जुड़े लोकगीत

हमने जो लोकगीत एकत्र किए, उनमें से कुछ बहुत खास रहे:

  • करमा पर्व का गीत: इस त्योहार में बहनें अपने भाइयों की भलाई के लिए व्रत रखती हैं। हमने एक सुंदर गीत रिकॉर्ड किया जो इस पर्व के दौरान गाया जाता है।
  • शादी और विदाई के गीत: जब एक गायिका बेटी की विदाई का गीत गा रही थीं, तो उनकी आँखों से आँसू निकल आए। माता-पिता के मन की पीड़ा और उम्मीद इन गीतों में साफ झलकती है। बेटी से विदा लेते वक्त हर माँ-बाप यही चाहते हैं कि जहाँ उनकी बेटी जाए, वहाँ उसे वही सम्मान और प्रेम मिले।
  • मुंडन संस्कार का गीत: जब बच्चे का पहला सिर मुंडवाया जाता है, तब बुज़ुर्ग खुशी से गीत गाते हैं। हमने इस मौके पर गाया जाने वाला एक लोकगीत भी रिकॉर्ड किया। हमारे साथ जो रह गया

हम सिर्फ गीत नहीं लेकर लौटे—हम अनुभव, भावनाएँ और रिश्ते लेकर लौटे। हमने महसूस किया कि लोकगीत केवल मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि एक पहचान, एक विरासत और एक जुड़ाव हैं।

इस प्रोजेक्ट ने हमें अपने समाज की सांस्कृतिक गहराइयों से जोड़ा और यह समझ दी कि गाँवों में आज भी कितनी समृद्ध मौखिक परंपराएँ जीवित हैं।

फील्ड वर्क समाप्त करने के दो महीने बाद मार्च में EIOC meetup आयोजित किया गया। यह meetup बैंगलोर में आयोजित किया गया था जिसमें सभी समुदायों के सदस्य शामिल थे। मुझे भी वहां शामिल होने का मौका मिला था। मीटअप का मुख्य उद्देश्य सभी समुदायों के सदस्यों को एक-दूसरे से परिचित करवाना, EIOC प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने का प्रयास करना, संग्रहित वीडियो ट्रांसक्राईब करने की प्रक्रिया सीखना, स्रोत भाषा के सभी वीडियो लक्ष्य भाषा में रूपांतरित करना, फील्ड वर्क में किये जाने वाले सभी कार्यों का प्रेजेन्टेशन तैयार कर उसे समुदायों में सांझा करना आदि था। वहां सभी सदस्यों को अपनी संस्कृति एक-दूसरे के साथ सांझा करने का अच्छा मौका मिला। सभी संस्कृति के खान-पान, वस्त्र, आभूषण, संगीत आदि का आनन्द लिया गया। वहां सदस्यों के द्वारा संग्रहित पर्व त्यौहार आदि के गीत की भी चर्चा हुई। जैसे खोईछा भरने के समय गाया जाने वाला गीत। हिंदु धर्म में खोईछा शब्द काफ़ी प्रचलित शब्दों में से एक हैं। जब कोई लड़की शादी के बाद अपने ससुराल विदा होती है तब उसकी माँ या भाभी उन्हें एक लाल या पीले कपड़े की पोटली में हल्दी की गांठ, सिक्का, दूर्वा, फूल, धान, चावल, जीरा, सुपारी, कौड़ी, मिठाई आदि भर कर देती है, मान्यता है कि इससे लड़की के जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहेगी। देवियों को भी विसर्जन के दिन यह रस्म किया जाता है। वहां शीतला पूजा के गीत की भी चर्चा हुई। यह पूजा नवरात्रि के समय नौ दिनों के लिए होता है। इस दौरान नीम के पेड़ की भी चर्चा हुई, मान्यता है कि शीतला पूजा में नीम के पेड़ की भी पूजा की जाती है। अतः इसी प्रकार हम सभी एक-दूसरे के संस्कृति से अवगत हुए। वहां सभी सदस्यों ने बढ़-चढ़ कर अपनी बात रखी, मैं भी फील्ड वर्क कैसे की, कुछ चुनौतियां, कुछ जानकारियाँ, कुछ फायदे, कुछ मनोरंजन आदि सभी के साथ सांझा की। बहुत अच्छा अनुभव रहा मेरा मीट अप में शामिल होकर। हम सभी सदस्य EIOC प्रोजेक्ट को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे है और जल्द ही यह प्रोजेक्ट अपनी ऊंचाईयों को छूती चली जाएगी, नये सदस्य भी जुड़ेंगे और ऐसे ही हम सभी मीट अप में फिर से मिलेंगे, सभी सदस्यों के बीच यूँही मित्रता,प्यार और स्नेह बना रहेगा।

“कल और आएंगे नगमों की खिलती कलियाँ चुनने वाले, मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले।”

धन्यवाद!

मीट अप और फील्ड वर्क की कुछ झलकियां:—

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